दर्द की राह से हम गुज़रते रहे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
दर्द की राह से हम गुज़रते रहे
चोट पर चौट खाकर उबरते रहे
जब जहाँ जिस तरह आज़माए गए
हर कसौटी पे पूरे उतरते रहे
साथ खुलकर उजालों का हमने दिया
यूँ अंधेरों के दिल में अखरते रहे
शूल थे जो हमें, हम उन्हीं के लिए
फूल की गन्ध बनकर बिखरते रहे
लोग डरते हैं दुश्मन की चालों से, हम
दोस्त के कारनामों से डरते रहे
शाह माने गए, वो ज़माने में, जो
रोज़ वादों से अपने मुकरते रहे
कौल आज़ाद करने का सैयाद कर
बुलबुलों के परों को कतरते रहे
ग़म के दरिया में डूबे-तिरे इस क़दर
रंग जीवन के हर पल निखरते रहे
दाग़ दामन में उनके ही पाए गए
पाक़ दामन की जो बात करते रहे
उनको मंजिल का दीदार कब मिल सका
बच के काँटों से जा पाँव धरते रहे
सेहरा जीत का उनके सिर पर बंधा
जो क़फ़न बांध सिर से चिरते रहे
सब उन्हीं से मिले हमको रंजो-अलम
दम मुहब्बत का हर दम जो भरते रहे
व्यंग जितने कसे हासिदों ने ‘मधुप’
गीत के बोल उतने सँवरते रहे