भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द नहीं दामन में जिनके / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द नहीं दामन में जिनके
ख़ाक वो जीते, ख़ाक वो मरते

जान के भी लहरों को फरेबी
घर है बने कितने रेतों के

नादानों! धन, दौलत, घर को
अपना-अपना क्योंकर समझे

उनसे क्यों डरते हो साहिब
यूँ न झुको तुम ज़ुल्म के आगे

ढूँढ सको तो ढूँढ लो उसको
काटों में ख़ुशबू जो महके

दिल पत्थर है जिस इन्साँ का
कैसे किसी के दर्द से धड़के

किस्से उम्र के करते बयाँ हैं
चाँदी जैसे बाल ये सर के

खोई-खोई-सी ये ‘देवी’
अपना घर दर-दर है ढूँढे.