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दर्द पे एहसास का सिंगार कर / सूरज राय 'सूरज'
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दर्द पर एहसास का सिंगार कर।
आह जो निकले उसे अशआर कर॥
संग हिल जाएँ सभी आधार से
आंसुओं की धार में वह धार कर॥
जंग है अद्धुत मेरी किरदार से
जीत जाता हूँ हमेशा हार के॥
सर झुकाएगा तुझे दुश्मन तेरा
बस उसे आगाह करके वार कर॥
ऐ दिले-कमज़र्फ ़ ये किसने कहा
ज़िन्दगी के दर्द को अख़बार कर॥
उम्र लम्बी हो मेरे ईमां तेरी
जी नहीं सकता मैं तुझको मार कर॥
प्यार की छलनी उठा "सूरज" ज़रा
खोल खिड़की चाँद का दीदार कर॥