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दर्द मिटावऽ / राम सिंहासन सिंह

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मंदिर के दरबाजा खुललो
आवऽ फूल चढ़ाबऽ
जोर-जोर से जय-जय बोलऽ
कसके संख बजाबऽ
भीड़ भरल हौ बाहर-भीतर
जगह न खाली मिलतौ तिल भर,
अइसन में का ध्यान लगैबऽ
कइसे प्रभु के भजन सुनैबऽ
मार-पीट आउ धक्का-मुक्का
करइत कहीं हथ एक्का-दुक्का
अइसन में हम पड़ल अकेला
सहल ना जा हई ठेलम-ठेला
इतने में हम देखली अयते
दीन-दुखी सज्जन के गयते
एक किनारे हाथ उठाके
माँगइत हे कुछ भजन सुनाके
ओकरे पर हम फूल चढ़ैली
ओकरे आगे सीस नवैली
फिर तो ओकर हँसी थिरकलई
लगले सूरज नया निकलई
सहसा कोई कहलक आके
मन में सुथर भाव जगाके
दुखियन के सेवा से बढ़के
पूजा न हई इससे बढ़के
तू भी आवऽ मंन-मंदिर में
आके फूल चढ़ाबऽ
जे भी दीन-दुखी हथ उनकर
जाके दर्द मिटाबऽ