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दर्द में मत दहो / चेतन दुबे 'अनिल'

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जो लिखा भाग्य में वो मिलेगा मुझे,
तुम अमानत किसी की सलामत रहो।
सारी खुशियाँ तुम्हारे चरण चूम लें,
हैं दुआएँ मेरी दर्द में मत दहो।

टूट जाने दो दिल , है न कोई गिला,
कोई सिकवा नहीं, कुछ शिकायत नहीं।
जान तो मैं गया प्यार होता है क्या,
मुझपे होगी तुम्हारी इनायत नहीं।

मैं मुसाफ़िर हूँ , मेरा पता पूछकर,
कौन कब राह में लूट लेगा मुझे।
छोड़कर यदि अकेला चली तुम गई,
कौन कब हाथ में हाथ देगा मुझे।

प्यार का यह दिया किस तरह से जले,
चल रही है हवा आँधियाँ तेज़ हैं।
कौन - सा एक झोखा बुझा दे दिया,
बिजलियों की दुरभिसंधियाँ तेज़ हैं।