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दर्द समंदर / प्रीति समकित सुराना
Kavita Kosh से
दर्द समंदर जितना गहरा,
आँखों पर पलकों का पहरा।
भीतर भीतर घुटते रहते
अपनी पीड़ा किस से कहते,
मुसकानों की ओट लिए है
अब आँसू कोरों पर ठहरा।
दर्द समंदर जितना गहरा,
आँखों पर पलकों का पहरा।
बातें अपनों से कहनी थी
बातें अपनों की सुननी थी,
जिसको भी आवाज लगाई
हर अपना था गूंगा बहरा।
दर्द समंदर जितना गहरा,
आँखों पर पलकों का पहरा।
यूं तो सब कहते अपने है
उनसे ही टूटे सपने हैं,
अपनी अपनी ढफली बाजे
काले मन पर रंग सुनहरा।
दर्द समंदर जितना गहरा।
आँखों पर पलकों का पहरा।