भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
अहाँ
हमरा छोड़ि देलियै
दर्द
अपनयलक
दर्दकें हम
जोगा कऽ रखलियै
पोसलियै
दर्द पोसलक हमरा
एसगर
तन आ मनकें संग देलक।
दर्द
हमरा संसार तकबाक
टेबबाक
दृष्टि देलक
हिम्मति देलक
शक्ति बढ़यलक।