भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्पण चेहरों ने घेरा है / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्पण चेहरों ने घेरा है
इक तेरा है, इक मेरा है

आता है कोई जाता है
यह जोगी वाला फेरा है

कल हंगामों की बस्ती थी
अब खामोशी का डेरा है

हम दीवानों की दुनिया को
शंकाओं ने आ घेरा है

सूरज निकलेगा तब चलना
उर्मिल कुछ दूर सवेरा है।