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दल तन्त्र / साधना जोशी

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दल तन्त्र बना है,
राजनितिज्ञों के लिए,
भारत की भूमि ।
जहाँ नेता देष के नहीं,
दल के होते हैं ।
जनता के लिए नहीं,
वे अपने लिये जीते हैं ।
वो अपना खजाना,
भरने के लिए,
घोटाला करते हैं ।
सत्ता में आते है,
चुनाव का खर्चा,
बटोरने के लिए,
अपने बेटों लिए,
राजगद्दी पाने को ।
जिन्दगी को,
अÕयासी में गुजारने को ।

देष की घटना पर,
केवल चर्चा,
गुनाहों को,
छिपाने के प्रयास
सच्चाई को दबाकर,
झूठ का बबाल ।

भारत माता को,
नोच खाने का,े
मुह दहाड़ रहे हैं,
हर पल ।

ये कौन से बीज पैदा हुये,
इस धरती पर,
जहां रानी लक्ष्मा बाई,
महाराणा प्रताप,
वीर षिवाजी,
पृथ्वीराज चौहान,
टीपू सुलतान,
सरदार भगत सिंह ,
सुभाश चन्द्र बोस,
चन्द्र षेखर आजाद
न जाने कितने बीर पुत्रोें को
जन्म दिया है ।

जब देष नहीं रहेगा तो,
दल को बचाकर क्या करोगे ।
कहां फिट करोगे चुनावी गोटियाँ,
धरती नहीं रहेगी तो,
कहां सजाओगे,
सपनों का महल ।

किस देष में,
आषियाना खोजोगे,
भारत माता को,
बदनाम करने वाले,
बता दो,
तुम कौन से देष के वासी हो ।
तुम कहां से आये हो,
और कंहा जाना है तुम्हें ।

छोड़ दो इस भारत माता को,
उन वीरों के हवाले,
जो अपने लहू से,
सींचते हैं इस धरती को ।
उन कर्त्तव्य निश्ठों के पास,
जो कर्म को पूजा मनाते हैं,
अपने लिए नहीं,
परोपकार में जीते हैं,
अपने अंष देते है,
दुसरे को अंष नहीं लेते ।
 
हाथों को फैलाते हैं,
देने के लिए,
लेने के लिए नहीं ।
सेवा करते हैं,
दिखाने के लिए नहीं,
भावों की भूख,
मिटाने के लिए ।
देखना! उस दिन हमारी,
इस मात्र भूमि पर,
केवल सुख समृद्धि और खुषी होगी ।
और तुम्हारे पास होगी,
आत्माग्लानि केवल आत्मग्लानी ।