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दवाम के दयार में / रियाज़ लतीफ़

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दवाम के दयार में
दवाम के क़दीम रेग-ज़ार में
अदम जहाँ सराब है
तिरे मिरे कई निशाँ तड़प तड़प के मर गए !
इक अजनबी सी ख़ाक पर कई ज़माँ बिखर गए
इस अजनबी सी ख़ाक पर
सब अपनी अपनी साँस को समेट कर निकल पड़े
अलील सी नजात में फिर अपनी रूह फूँकने
नजात इक फ़रेब है
ये दश्‍त इंतिज़ार में
दवाम के क़दीम रेग-ज़ार में
जिहत का इक मज़ार है
कि जिस के गुम्बदों के होंट पर यही पुकार है
नजात इक फ़रेब है
नजात का हिसार क्या ?
दवाम अपनी मौत है
दवाम से फ़रार क्या ?