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दश्त में प्यासी भटक कर तिश्नगी मर जाएगी / अमन चाँदपुरी

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दश्त में प्यासी भटक कर तिश्नगी मर जाएगी
ये हुआ तो ज़ीस्त की उम्मीद भी मर जाएगी

रोक सकते हो तो रोको मज़हबी तकरार को
ख़ून यूँ बहता रहा तो ये सदी मर जाएगी

फिर उसी कूचे में जाने के लिए मचला है दिल
फिर उसी कूचे में जाकर बेख़ुदी मर जाएगी

बोलना बेहद ज़रुरी है मगर ये सोच लो
चीख़ जब होगी अयाँ तो ख़ामुशी मर जाएगी

नफ़रतों की तीरगी फैली हुई है हर तरफ़
प्यार के दीपक जलें तो तीरगी मर जाएगी

रंज-ओ-ग़म से राब्ता मेरा न टूटे ऐ ख़ुदा
यों हुआ तो मेरी पूरी शायरी मर जाएगी

दोस्तों से बेरुखी अच्छी नहीं होती ‘अमन’
दूरियाँ ज़िन्दा रहीं तो दोस्ती मर जाएगी