दस दोहे - 5 / महेश कटारे सुगम
1
जनीं मान्स के मूड़ पै, जग कौ आदौ भार,
जो ऊ की इज़्ज़त करत, वे हैं इज़्ज़तदार ।
2
मोंगे बस बैठे रहौ, ठूँसें ऊमर कौर,
जो कैवें सो सुनत रऔ, जा पटैल की पौर ।
3
कविता हम काँ लिखत हैं, करत लट्ठ सौ वार,
करत लड़ाई ई भती, कै ई कै ऊ पार ।
4
मौसम बीना कौ सुनौ, है भौतई उद्दण्ड,
लगै जेठ की रात में, अघन फूँस की ठण्ड ।
5
मिले बिलैया चौंखरे, भूले सबरौ बैर,
फँस गऔ गाँव चुनाव में, नईंयाँ कोउ की खैर ।
6
मुतके नेता एक से, एकई सी करतूत,
नीयत सबकी एक सी, सब कुत्ता के मूत ।
7
लीपौ कच्चौ चौतरा, पोती कच्ची भींट,
जगर मगर घर हो गऔ, न सिमेंट न ईंट ।
8
इत्ती तौ अब आ गई, सबखों सुगम तमीज,
बीमारी के सामनें, का करहै ताबीज ।
9
एक दिना कै रए हते, हमसें भैयालाल,
मेंगाई नें खेंच लई, ई जनता की खाल ।
10
बिना प्याज चटनी बटै, बिना टमाटर दार,
मेंगाई कौ दोंदरा, सो रई है सरकार ।