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दस पाँच सखिया मिली, चलली बजरिया रामा / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दस पाँच सखिया मिली, चलली बजरिया<ref>बाजार को</ref> रामा।
ओहि<ref>उसी</ref> ठइयाँ<ref>जगह</ref> टिकुली रे, भुलायल हो राम॥1॥
कहमा<ref>कहाँ</ref> महँग<ref>महँगा</ref> भेलइ<ref>हो गया, हुआ</ref> टिकुली सेनुरवा रामा।
कहमा महँग भेलइ, बालम हो राम॥2॥
लिलरे<ref>ललाट पर</ref> महँग भेलइ, टिकुली सेनुरवा रामा।
सेजिए महँग भेलइ, बालम हो राम॥3॥
कहमा जो पयबइ<ref>पाऊँगी</ref> हम, टिकुली सेनुरवा रामा।
कहमा पयबइ अपन बालम हो राम॥4॥
बजरे<ref>बाजार में</ref> में पयबइ हम, टिकुली सेनुरवा रामा।
ससुरे पयबइ अप्पन बालम हो राम॥5॥
के मोरा लाइ देतइ<ref>ला देगा</ref> टिकुली सेनुरवा रामा।
करे मिलयतइ<ref>मिलायगा</ref> अप्पन बालम हो राम॥6॥
देओरा<ref>देवर, पति का छोटा भाई</ref> मोरा लाइ देतन टिकुली सेनुरवा रामा।
सतगुरु मिला देतन बालम हो राम॥7॥
कहत कबीर दास पद निरगुनियाँ हो रामा।
संत लोग लेहु न बिचारिय<ref>विचार</ref> हो राम॥8॥

शब्दार्थ
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