दहेज को आग लगा दो / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
घर घर में जो आग लगाये उस दहेज को आग लगा दो ।
जीवन को पतझार बनाये उस दहेज को आग लगा दो ।
सरस प्रेम में गरल घोल दे स्नेह सुधा को जो पी जाये,
फूलों पर शोले बरसाये उस दहेज को आग लगा दो ।
सहज जिन्दगी की धारा को नीरस मरूथल नित्य बनाये,
आँसू आँसू राग सजाये उस दहेज को आग लगा दो ।
लुटे लुटे सिन्दूर सिसकते अंगारे हँसते माँगों पर,
नयी माँग पर माँग बढ़ाये उस दहेज को आग लगा दो ।
विकट लोभ की सीमाओं का अतिक्रमण करता है हरपल,
बहुओं के उपवन झुलसाये उस दहेज को आग लगा दो ।
मन की मधुर भावनाओें का मन में कर देता है मर्दन,
सम्बन्धों के सेतु ढहाये उस दहेज को आग लगा दो ।
मानवता के माथे पर श्याही कलंक की पोत रहा जो,
ममता का उल्लास जलाये उस दहेज को आग लगा दो ।
कुल ममत्व अपनत्व मिटाकर बन्धन पावन पावन तोड़े,
आगन में दीवार उगाये उस देहज को आग लगा दो ।
अपनी पावन परम्पराओं पर जो लांछन व्यर्थ लगाये,
मधुर प्यार के दिये बुझाये उस दहेज को आग लगा दो ।