भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दांतों की फसल / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
अटर की रोटी पटर की दाल
डाली उसमें मिर्ची लाल।
खाते चुनमुन-सी सी-सी
हंसता भोलू से खी-खी खी
हंसते हंसते दांत झड़े
कुछ छोटे, कुछ बड़े-बड़े।
भोलू तब से हुआ उदास
नहीं किसी के जाता पास
वर्षा ने खेला फिर खेल
दांतो की उग आई बेल
भोलू ने पाए सब दांत
बिगड़ी हुई बनी अब बात।