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दांतों की फसल / सुरेश विमल

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अटर की रोटी पटर की दाल
डाली उसमें मिर्ची लाल।

खाते चुनमुन-सी सी-सी
हंसता भोलू से खी-खी खी
हंसते हंसते दांत झड़े
कुछ छोटे, कुछ बड़े-बड़े।

भोलू तब से हुआ उदास
नहीं किसी के जाता पास
वर्षा ने खेला फिर खेल
दांतो की उग आई बेल
भोलू ने पाए सब दांत
बिगड़ी हुई बनी अब बात।