दागे पड़थौं धरे धर / गुरेश मोहन घोष
हम्में तेॅ केरानी बाबू, बबूल हमरोॅ बैरिस्टर
गीता के तेॅ डाक्टर करलां रीता केरोॅ इन्जीनियर
बुल्ले जाय छोॅ सत्तू खाय छोॅ सतना तोरोॅ जोतौं होॅर
नन्हकी पिन्हथौं कौरै नंूगा-घरनी के छौं की फिकर
तीने सौ के घोॅर किराया नमरी रोजे डेरा पर
पाँच सौ छेलोॅ छौ सौ भेलोॅ यैंसै केना चलतै घोॅर
कागज बढ़तौं सर-सर-सर, सब सरोॅ के एक्के दर
कम बेसोॅ के बात करै छोॅ, धरले रहथौं टेबुल पर
दही चूड़ा सर-सर-सर, जत्ते गुड़ देभौं ऊपर
ओत्तेॅ मीठोॅ लागथाैं भैया चाखी देखौं जीहा पर
दोबर तेबर पाबै लेली रोजे छीटै छोॅ गोबर
पैसा खोलोॅ, यूरिया लानोॅ, तबेॅ देखोॅ मनो-दर
बम भोले जी हर-हर-हर, बासकी छौं या कि देघर
बांझिन अैथैं कोख भराबै-गाँजा देॅ अठन्नी भर
बिन लेलें कि सूरजोॅ घामैं सूप चढ़ाबोॅ घाटै पर
मन्तर पढ़लें जन्तर दैछै-ओझौं लै छै तरे-तर
बेंगै नाकी टर-टर-टर, ‘टर’-‘डर’-सब निडर
कुत्ता नाकी भों भों करै, सभ्भे तेॅ बनलै गीदर
अन्हरोॅ चोन्होॅ बिजली रोजे, लेकिन मैन्हा पुरतै कर
पूजा पीछू दखिना आगू तोहें गाँधी के बन्दर
डरें काँपै थर-थर-थर, मुन्सी बनलै कलक्टर
रोज खुनोॅ के होली में, पैसा टानै झोली भर
कानोॅ कत्तो रात भरी तों-मानोॅ हमरोॅ बात मगर
तोरै लिखलोॅ जरनी मरनी, हुनका छै लक्षमी क बर
आलू रुपया सेर बिकै छै, आठ आना छै टमाटर
दू पैसा के दोॅर बिकै छै, बड़का-बड़का दसकन्धर
सूने घोॅर छौं, मैया नै छौं, राती आबोॅ जी देवर
लाजो बेची मौज करै, वै भौजी नाकी सब अन्दर
गोला केॅ गलफुल्ली आरो कैलाकेॅ कानोॅ में जोॅर
चरका केॅ खुरहाँ धरलक, करकौनै उठावै खोॅर
सीक छौं खोसलोॅ बातां में दहु ओकरा आगनी पर
हर बरदा रोगैलोॅ जाय छौं, दागेॅ पड़थौं धर धर
सब सरोॅ के एकेॅ दर