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दानलीला / भाग - 3 / सुंदरलाल शर्मा

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दोहा
पिरथी सरग पताल औ, चन्दा सुरुज लगाय।
तीन लोक चौदा भुवन, राज हमारेच आय॥

चौपाई
इहां कंस ला कउन डेरावै। ऐसन कंस हजारों आवै॥
चूंदी धरके अभी पछारौं। चोंगी पियत भरे में मारौं॥
तेखर डर-मोला डरुवाथौ। मोला लइका जान बताथौ॥
मैं कैसन लइका हौं तेला। जानत हो लड़का-पनकेला॥
रकसा रकसिन खेलत मारेंव। नाथेंव विखहर सांप-निकारेंव॥
गोबर्धन पहाड़ उपकायेंव। छिनिया अंगुरी बीच-उठायेंव॥
ऐसन मैं लैकई दिखावौं। जानत हौ का गुन गोंठियावौं?॥
मोला माखन चोर बताथौ। का गुण आपन ऐब लुकाथौ॥
सुरता है तुम्हला वो दिनके। लुगरा ला-लेके सब झिन-के॥
बांधेंव मैं कदम्बके डारी। कैसन मजा उड़िस? तब भारी॥
नगरी नगरी ऊपर आयेव। तौन दिनाके याद भुलायेव॥
नाक रगरके कुनश बजायेव। तब सब आपन लुगरा पायेव॥

दोहा
सुनके ऐसन बातला, सब झन रहिन लजाय।
आपुसमें लागिन कहे, कैसे कथैं कन्हाय?॥

चौपाई
एक कोंचक के एक बतावैं। सब मुचमुच मुच मुच मुसकावैं॥
देखे गोई! कहब कन्हाई। निच्‍चट निल्‍लज होगै दाई!
बोलत वोला लाज नइ लागै। अभी ले कैसे कलऊ खरागै?
कहांके कहां जोर चटकाथै। फोकट हमला लाज मराथै॥
काखर काखर मुह ला धरिहै। जौने सुनि है हांसी करि है॥
चार झनाके बीच बताथै। मूंड़ हमार नीच करवाथै॥
ऐसन दूसर जघा बताहै। ठट्ठा भला कौन पतिया है?
लेतो भला! बता दे कोई। हरि ला ऐसन चाहिय गोई?॥
ऐसे सुनत श्याम मुसकाये। भऊं नचावत आगू आये॥
सेर बांध चतुरी खोजवायेंव। नहीं तुम्हार बरोबर पायेंव॥
चलि है नहि मोर मेर चलाकी। अभी संउरिहौ दाई काकी॥
मानो सोझ जगात मड़ादौ। लेखा करके सबो चुका दौ॥

दोहा
एकक सबो हिसाबके, कर देव मोर चुकाव॥
मंझन होवत जात है, सोज हंसत घर जाव॥

चौपाई
नहिं तो फट फट में पर जाहौ। फोकट इज्‍जत अपन गंवाहौ॥
देखत अभी नगा मैं लेहौं। औ फेर सबो हाल कर देहौं॥
आखिर फेर हांथका आहै। बात तुम्हार कोन रहि जाहै?॥
कीर खींच के कथौं चेता के। मोला किरिया नन्द बबा के॥
चाहे मूड़ पटक मर जावौ। कतको चाहौ हड्ड बड़ावौ॥
जबले नहीं जगात मड़ाहौ। कैसनो करौ जान न पाहौ॥
ऐसन सुनत सबौ रौताइन। मुँह बिचकाइन और रिसाइन॥
बिच झाड़ी में सुन्ना पाके। डेरुवावत हौ हम ला आके॥
लोखन केर उधैया आये। छेंकत बेटी पतो पराये॥
अभी जाय घर अपन बताथन। लिगरी दू-के-चार लगाथन॥
तौ फेर श्‍याम हाल को हो है?। हांसी खेल बात ये नो है॥
जाथौं बंधवा मेर बताथौं। भुंसड़ा तोर अभी खेदवाथौं॥

दोहा
टूरी टूरी जान के, मोहन करत अबेर॥
घुंचौ! चलौ! अब जान दौ, ढरकन लागिस बेर॥

चौपाई
लहत बिहत के रहब भला अय। बहुंतों के तपबो हर का अय?॥
गांव गांव में रथैं गौंटिया। कोनो ऐसन करथैं? धीया॥
जात पांत में सबो बराबर। नै अय गोई घाट? कोनो हर॥
दू-कोरी गेरुवा-के मारे। आंखी भइस बेलन्द तुम्हारे॥
छो छो करके गाय चरावै। राजा कहत लाज नइ आवै?॥
कमरा औ खुमरी ओढ़े-बर। बड़े बड़े सांहुंत जोरे बर॥
ढोंग बघारे बर हो जेला। कहै जौन नइ जानै तेला॥
हमला कौन बतावै लाला। जानत हवन तीन पुरखा-ला॥
तुम तो आव नन्द के बेटा। जनमें हवौ जसोदा पेटा॥
गड़े हवै गोकुलमें नेरुवा। घर में है दू कोरी गेरुवा॥
चोरी कर कर लेवना खायेव। कहूं बंधायेव कहूं पिटायेव॥
नइ चोरी में पेट भरिस जब। श्याम पेंडारा परे लगेव तब॥
जब तुम दिन भर गाय चराथौ। तब घर में खाये बर पाथौ॥
सुरता तउन भुला गय मुहना!। कहां गंवायेव नोई दुहना?॥
पंड़रा नन्द जशोदा पंड़री। तुम कैसे हौ करलुठुवा-हरि?॥

दोहा
परिस दुकाल-गुपाल जब, हमर राज में आय।
दुइ काठा कोंदों बदल तुमला लइन बिसाय॥

चौपाई
जो राजा हो भला बताथौ। हांथी कहौ कहां ले पाथौ?॥
छाता मौर कहां तुम डारे। नौकर चाकर कहां तुम्हारे॥
गादी बइठौ चंवर डुलावौ। तौ फेर का गुण गाय चरावो?॥
देखे गोई! आखिर अहिरे। राजा होके भदईं पहिरे॥
हीरा मोती लाल कहाँ गय?। गोंगची पहिरे लाज नहिं ला गय॥
पीक मजूर लगाये पागा। लाज चिटिक नइ लागै का गा?॥
फेंकौ खुमरी ढंठ्ठा बांधौ। कमरा चीर अंगरखा साधौ॥
कहिबे संझहा नन्द गौंटिया। देहै एक झिन लगा पहटिया॥
फबित नहीं आवे थोरको के। ठेंगा पकरे राजा होके॥
बिन मनखे तनखे बिन बाजा। नेवाई के देखेन राजा॥
ऐसन सुनत श्याम मुसुकाइन। निधड़क निचट अगाड़ी आइन॥
सूवा झन पोंष चारिक ठन। रौताइन राखैं घर दूझन॥

दोहा
कोयली अस बासत हवौ, कहौ न बात बिचार।
मुहु लग्गी हो गये हव, गोकुलके दूचार॥

चौपाई
तभे सभे मिलकी मारत हौ। तुम मोला निदरे डारत हौ॥
सुनतो ओ! पूछत हौं तोला। कब जन्मत देखे हस मोला?॥
कहां ले नन्द जसोदा आइन। जनथौ इन्हला कोन बनाइन?॥
मही सिरजथौं मही चराथौं। मही जियाथौं मही मराथौं॥
मोर बिना पाना नइ हालै। आखिर तुम ला कहौं कहां ले॥
पाप अघात भुंया गरुवाइस। मोर मेर रोवत तब आइस॥
तब मैं मनमें मया मड़ायेंव। मनखे के चोला धर आयेंव॥
जेमा मनुवा चारी करि हैं। लीला गाहैं सुनि हैं तरि हैं॥
तेला अड़हा मन-का जानौ?। टेंड़गा सोझहा अपने तानौ॥
कमरा-के तुम निन्दा करथौ। वही कमरहा पाले परथौ॥
का जानौ कमरा के गुण ला?। दही औ कपसा एके तुमला॥
तीन लोक में मैं खोजवायेंव। कमरा के न बरोबर पायेंव॥
ग्वालिन सुनत कहन अस लागिन। कोन गोंठला कहां निकालिन?॥