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दामने-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

 
 दामने-सद-चाक को इक बार सी लेता हूं मैं
तुम अगर कहते हो तो कुछ रोज़ जी लेता हूं मैं

बे-सबब पीना मिरी आदात में शामिल नहीं
मस्त आंखों का इशारा हो तो पी लेता हूं मैं

गेसुओं का हो घना साया कि शिद्दत धूप की
वो मुझे जिस रंग में रखता है जी लेता हूं मैं

आते आते आ गये अंदाज़ जीने के मुझे
अब तो 'रहबर` ख़ून के आंसू भी पी लेता हूं मैं