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दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा / यगाना चंगेज़ी
Kavita Kosh से
दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे
क्या बताऊँ ज़ख़्म-ए-दिल क्या क्या दुआ देने लगे
वाए ना-कामी कहाँ सफ़्फ़ाक ने रोका है हाथ
ज़ख़्म-हा-ए-शौक़ जब कुछ कुछ मज़ा देने लगे
चारा-साज़ो मुझ से रुसवा जाँ-ब-लब बीमार को
ज़हर देना चाहिए था तुम दवा देने लगे
यास ओ हिरमाँ आह-ए-सोज़ाँ अश्क-ए-ख़ूँ दाग़-ए-जुनूँ
हज़रत-ए-इश्क़ और क्या इस के सिवा देने लगे
आज हो शायद किसी को आतिश-ए-ग़म की ख़बर
शुक्र है अब उस्तुख़्वाँ बू-ए-वफ़ा देने लगे
क्या मुख़ालिफ़ हो गई हम से ज़माने की हवा
'यास' देखो हज़रत-ए-दिल भी दग़ा देने लगे