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दाम्पत्य / बुद्धिनाथ मिश्र

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नदी की यह खास आदत है
कि झरने के मुखर उन्माद जल को
बाँधकर तट की भुजाओं में
सहज ही दिशा दे देती।

कौन होगा दूसरा जो झेल पाएगा
प्रबल आवेग पर्वत का
या हरेगा शोक छाती से लगाकर
गलाएगा दर्प हिमनद का

नदी की यह खास आदत है
कि जब चट्टान-सा दिन तोड़ कर लौटो
पुलक भरती नसों में, चूम अधरों से
बला लेती।
यह नदी ही है कि जिसके पाश में
बँधकर कभी उड़ ही न पाए
पंखवाले नग
यह नदी ही है, चली आती रँभाती
शाम को घर
घने जंगल तेज़ भरती डग

नदी की यह खास आदत है
भटकने वह न देती सिन्धु-पर्वत को
प्रकाश-स्तम्भ बन, हर पोत को
वह पथ बता देती।

पंखवाले नग= यह मान्यता है कि पहले पहाड़ों के पंख होते थे।

(रचनाकाल : 06.04.1989)