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दारिद्र को जारन को नहीं आयो / शिवदीन राम जोशी

अर्जुन दग्ध कियो वन खाण्डव,
                जाय यो काज तो तुच्छ सरायो ।
केसरी पुत्र कछु न करी अहो !
                स्वर्ण की लंक को जाय जरायो ।
त्रिभुवन नाथ मदन को जारि के,
                  लोक आनन्द को दूर दुरायो ।
सब जन के मन में ताप करे,
           रे ! दारिद्र को जारन को नहीं आयो ।