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दार ,बरीं, जौ, दरिया लै गए / महेश कटारे सुगम
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दार, बरीं, जौ, दरिया लै गए ।
भड़या गुर की परिया लै गए ।
पैसा-धेला कितऊँ नईं मिलौ,
टाठी, लोटा, थरिया लै गए ।
गानो, गुरिया हात नईं लगौ,
तवा करैया, झरिया लै गए ।
चून तनक सौ हतौ छोड़ गए,
पापर भरी टिपरिया लै गए ।
ठण्ड हती सो गद्दा, पल्ली,
साड़ी, घंघरा, फरिया लै गए ।
काल टूट गई ती बउआ की,
टूटी सुगम पुंगरिया लै गए ।