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दास्ताने-ज़िन्दगी / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
कह रहा हूँ दास्ताने-ज़िन्दगी.
ग़म-ख़ुशी हैं दरमियाने-ज़िन्दगी.
मौत की क्यों फ़िक्र वो तो आएगी,
आओ गायें हम तराने-ज़िन्दगी,
खट्टे-मीठे कितने अनुभव रोज़ ही,
मिलते हैं हमको बहाने-ज़िन्दगी.
है जहाँ पर प्यार सँग सब्रो-सुकूं,
है वहाँ पर आशियाने-ज़िन्दगी.
ख़ुदकुशी को जा रहा था कोई जब,
आ गया कोई बचाने ज़िन्दगी.
बाँटिये मुस्कान औरों को सदा,
फिर लगेगी मुस्कुराने ज़िन्दगी.