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दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता / सदा अम्बालवी
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दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता
बजेंगे आप के दिल के भी तार आहिस्ता-आहिस्ता
निकलता है शिगाफ़ों से ग़ुबार आहिस्ता आहिस्ता
थमेगी आँख से अश्कों की धार आहिस्ता आहिस्ता
रही मश्क़-ए-सितम जारी अग कुछ दिन जनाब ऐसे
मिलेंगे ख़ाक में सब जाँ-निसार आहिस्ता आहिस्ता
मुक़द्दर उस का मुरझाना ही तो है बाद खिलने के
कली पर या-ख़ुदा आए निखार आहिस्ता आहिस्ता
बना है नाज़िम-ए-गुलशन कोई सय्याद अब शायद
परिंदे हो रहे हैं सब फ़रार आहिस्ता आहिस्ता
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
उतरता है ‘सदा’ उन का बुख़ार आहिस्ता आहिस्ता