भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन !/ कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बगत बावै
अन्धेरै रै भैंसै स्यूं
चांद रो हळ,
बीजै
आभै रे खेत में,
तारां रा बीज
जणां निपजै
दिन री सोनल फसल !