भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन आ गए बहार के इकरार कीजिए / सुजीत कुमार 'पप्पू'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन आ गए बहार के इकरार कीजिए,
दिल जो कहे पुकार के इज़हार कीजिए।

दिन-रात गुज़रते गए करते नहीं-नहीं,
अब और आप वक़्त न बेकार कीजिए।

जो है भरोसा आज वही आप बोलिए,
अब बेक़रार और न सरकार कीजिए।

कब से खड़ा हूँ आपके मैं इंतज़ार में,
बेचैन कर मुझे न यूं बीमार कीजिए।

दिलदार है करीब ज़रा मुड़के देखिए,
रुख़ पर नक़ाब डाल न दीदार कीजिए।

सब छोड़िए बहाना बहुत हो गया अभी,
अनमोल है ये जीवन गुलज़ार कीजिए।

देता नहीं ज़माना कभी साथ सोचिए,
करना अगर है प्यार तो स्वीकार कीजिए।