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दिन कविता का था / अनिल जनविजय

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दिन कविता का था
साहित्य अकादमी सभागार में
तुमने कविताएँ अच्छी पढ़ी थीं
मेरे विचार में
कविता पाठ के बाद अचानक
तुम आईं मेरे पास
कैसे हो, अनि ?
कहाँ हो तुम अब ?
--पूछा तुमने सहास

मैंने कहा--
क्या कहूँ मैं तुमसे
कहाँ है मेरा डेरा
वैसा ही हूँ जैसा तब था
वैसा ही जीवन
सम्बन्ध अजब-सा
कविता से मेरा

तुम भी तो हो वैसी की वैसी
ओ जादू की गुड़िया
पहले भी थीं, अब भी हो तुम
कविताओं की पुड़िया

1997 में रचित