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दिन का दर्पण / केदारनाथ अग्रवाल
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दिन का दर्पण
नित्य दिखाता
दिनकर,
संप्रेषित करता दर्पण से,
अवनी तल का व्यापक अंक,
जहाँ-
अतुल अनुमोदन होता,
अविनश्वर
अनुरंजक।
मैं
अनुरंजक आमोदन का
आसव पीता हूँ
जग में जीवन
अविकल जीता हूँ।
रचनाकाल: ०२-०९-१९९१