भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन का दर्पण / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन का दर्पण
नित्य दिखाता
दिनकर,
संप्रेषित करता दर्पण से,
अवनी तल का व्यापक अंक,
जहाँ-
अतुल अनुमोदन होता,
अविनश्वर
अनुरंजक।
मैं
अनुरंजक आमोदन का
आसव पीता हूँ
जग में जीवन
अविकल जीता हूँ।

रचनाकाल: ०२-०९-१९९१