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दिन का बीत जाना नहीं है / वंशी माहेश्वरी
Kavita Kosh से
शायद बीतना दिन का स्वभाव है
बीत गए कई दिन |
कई दीवारें बनीं टूटीं
खण्डहर
बनते बिगड़ते चलते रहे
साँसों में उतरते....
छोटी-छोटी बातें
धड़कनों में बजती रहीं
स्मृतियों में
डूबती रही
शांति की लय
सहसा
चौंककर आसपास
वे दिन लौट आते हैं
आत्मा में धँस कर....