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दिन ढलें दफ्तर में घुसत्वें खैर काँ सों होयगी / नवीन सी. चतुर्वेदी

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दिन ढलें दफ्तर में घुसत्वें खैर काँ सों होयगी।
सोयबे की बेर जगत्वें खैर काँ सों होयगी॥

दण्ड-बैठक पेलत्वे और खेलत्वे जा ठौर हम।
आज म्हाँ पिस्तौल चलत्वें खैर काँ सों होयगी॥

हर्द, चन्दन, घी, मलाई और केसर की जगह।
कैमिकल जिसमन पै मलत्वें खैर काँ सों होयगी॥

जिनकी तनखा मात्र पखवाड़े ई में पत जातु ऐ।
बे ई पूरौ टैक्स भरत्वें खैर काँ सों होयगी॥

अपने मैया-बाप कूँ ढेला तलक बखस्यौ नहीं।
बिस्व भर की फिक्र करत्वें खैर काँ सों होयगी॥