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दिन ये फूल के हैं / त्रिलोचन

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मत जाना चले कहीं भूल के

दिन ये फूल के हैं


किए मन के सिंगार

सामने कचनार

आम के बौर कहते हैं

देखो बहार

हाल ऎसे ही कुछ

अब बबूल के हैं


कोई रूठे मनाओ

जाओ जाओ अपनाओ

इस हवा की समझ से

सभी को समझाओ

कितने दिन फूल मंदिर

में धूल के हैं


आ गई वह कली

आज अपनी गली

कल जो आई थी

पहचान पा कर खिली

प्राण धारा के हैं

कहाँ कूल के हैं