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दिन से रात मिली / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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दिन से रात मिली,
तम के पीछे-पीछे दौड़ी;
जाती ज्योति चली।

लिपटा जीर्ण जरा से यौवन,
पाती धूप छाँह का चुम्बन,
तन पर धूम वसन कर धारण-
अग्नि प्रचण्ड जली।

सृष्टि-कुम्भ से नित्य निरन्तर,
झरते सुधा-गरल के निर्झर,
मेघ-रन्ध्र में स्वरलिपि को भर-
तड़प उठी बिजली।