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दिमाग़ी तारों के बीच / भुवनेश्वर
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दिमाग़ी तारों के बीच
जो अब बीती-अनबिसरी बातों की
कनफूसी बीने भी नहीं समझते
अब उन अफ़वाहों की तरफ़ देखते हैं
जो किसी वन-प्रांतर के जन्तु में जीवित है...
वह तो एक उपमा, रुपक है
जो पंख, दृष्टि और उन सब
चीज़ों से परेशान है...
जहाँ से हमने यात्रा-बिन्दु शुरू किया है
इसी जन्तु को अगर हम अपना आपा
जिसकी मर्दमशुमारी नहीं हुई
और जो बर्बर जंगली है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश बक्षी