भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दियना छू के तुम जगा दो / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
दियना छू के तुम जगा दो
बात बन ही जायगी
आँधी खंधकार की है
जान पर भई कआ पड़ी है फिर भी प्यास प्यार की है
कोई राग तुम कढ़ा दो
आशा मन ही जायगी
चोट खा के हिल गया है
दुःख सर्वदा नया है
फूल फिर भी खिल गया है
आँसुओं से नहला दो
दुबिधा छन ही जायगी
सभी जीना चाहते है
अँजुरी में माँगते है
अमृत पीना चाहते है
सब की चाहना बता दो
क्या विमन ही जायगी
(रचना-काल -22-2-62)