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दियार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ / शहबाज़ 'नदीम' ज़ियाई

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दियार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ
मैं एक उम्र से अपने ही घर में रौशन हूँ

हुजूम-ए-शब-ज़दगाँ से फरार हो कर आज
जमाल-ए-शोला-ए-शमा-ए-सहर में रौशनी हूँ

मैं मुन्तजिर हूँ तो फिर मुन्तज़र भी आएगा
चिराग-ए-जान की तरह रह-गुज़र में रौशन हूँ

न जाने कब मेरी हस्ती धुवाँ धुवाँ हो जाए
मैं एक साअत-ए-ना-मोतबर में रौशन हूँ

मेरे हरीफ़-ए-सुख़न कुछ तुझे ख़बर भी है
तेरे सबब से हिसार-ए-हुनर में रौशन हूँ

निज़ाम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ मेरा मुक़द्दर है
मैं इक सितारे की सूरत सफ़र में रौशन हूँ

अकेला जान के ख़ुद को न हो उदास के मैं
मिसाल-ए-अश्क तेरी चश्म-ए-तर में रौशन हूँ

मुझे तलाश न कर मेरी ज़ात में ‘शहबाज़’
बहुत दिनों से जहाँ-ए-दीगर मंे रौशन हूँ