Last modified on 17 फ़रवरी 2020, at 21:47

दिलों में उजाला नहीं रहा / आनन्द किशोर

उल्फ़त का जब दिलों में उजाला नहीं रहा
अम्नो अमाँ चमन में ज़रा सा नहीं रहा

मंज़िल मिले या ख़ाक मुक़द्दर की बात है
नीयत पे रहनुमा की भरोसा नहीं रहा

वापस वो लौट आया है तन्हा न जाने क्यूँ
पूछा तो कह दिया कि इरादा नहीं रहा

टूटा वही है जो था मुक़द्दर का पासबाँ
अब आसमाँ में वो ही सितारा नहीं रहा

जब तक था उनका साथ सहर ही सहर रही
पर उनके बाद कुछ भी तो अच्छा नहीं रहा

कितना है प्यार उनसे कभी कह नहीं सके
अब फ़ासला है, कहने का मौका नहीं रहा

यूँ मुश्किलों का वक़्त गुज़ारा तो है मगर
लेकिन जो हमने चाहा था वैसा नहीं रहा

भूले हुए हैं लोग सभी , ये कमाल है
दुनिया में कोई शख़्स हमेशा नहीं रहा

'आनन्द' हमको नाज़ था जिसके वुजूद पर
सागर में जा मिला वो किनारा नहीं रहा