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दिल्लगी और ही है, दिल की लगी और ही है / गुलाब खंडेलवाल

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दिल्लगी और ही है, दिल की लगी और ही है
देखना और है, दर्शन की घड़ी और ही है

और ही प्रेम के रंगों की है मीनाकारी
आपके रूप की वह जादूगरी और ही है

यों तो हर डाल पे इठलाती है फूलों की बरात
हम जिसे ढूँढ़ रहे है वो कली और ही है

प्यास होठों की तो पानी से भी बुझ सकती है
प्यास दिल की जो बुझा दे वो नदी और ही है

यों तो हर बात में आती है हँसी उनको, मगर
जो हमें देखके आयी है अभी, और ही है

हमने माना कि हरेक रंग में मादक है रूप
रूप चितवन से जो बरसा है कभी, और ही है

प्यार में और ही आँखों में महकते हैं गुलाब
चाँदनी रात में फूलों की हँसी और ही है