दिल्ली–दरवाज़ा / कुमार विकल
जंगल में आग लगने की ख़बर आई है
और सरकारी आदेश से
दिल्ली-दरवाज़ा बंद कर दिया गया है,
क्योंकि यह ख़बर भी आई है
कि आग जंगल से शहर की ओर बढ़ रही है.
वैसे तो इस तरह की आग जंगल में अक्सर
लगा करती है
और राजमहल ख़ामोश रहता है
सिर्फ़ दरवाज़ा बंद कर दिया जाता हौ
लेकिन इस बार
राहमहल से घोषणा हुई है
कि यह आग शहर से भागे कुछ ख़तरनाक
लोगों ने लगाई है
इसलिए यह आग ब्शहर की ओर बढ़ रही है
और शहर सुरक्षित नहीं है.
दरवाज़ा खोलो!
शहर के एक हिस्से से शोर दिल्ली दरवाज़े की
ओर बढ़ रहा है
दरवाज़ा खोलो!
हमें आग की ज़रूरत है
हमारे हिस्से के शहर में कभी आग नहीं जलती
सिर्फ़ राजमहल की आग की आँच पँहुचती है
इसलिए हमारी रोटियाँ कच्ची रह जाती हैं
हमारे कपड़े देर से सूखते हैं
हमारी नसों में दौड़ता ख़ून जम जाता है
हमारे ख़ून के ख़िलाफ़
यह राजमहल की एक साज़िश है
कि हमें आग नहीं आग का भ्रम दिया जाता है
और जब कभी आग जंगल में लगती है
तो शहर की सुरक्षा के नाम पर
शहर का दरवाज़ा बंद कर दिया जाता है.
और हम आग की प्रतीक्शामें
प्रार्थना की मुद्रा में
अपने ठंडे घरों में दुबके हुए
बुदबुदाते रहते हैं—
सिमसिम खुल जा सिमसिम खुल जा
लेकिन हमारी कच्ची रोटियाँ
अधसूखे कपड़े
और रीढ़ की हड्डियों में ठिठुरते डर—
साक्षी है:
किसी मंत्र से राजतंत्र दरवाज़ा नहीं खुलता.
अगर आग को शहर में लाना है
तो सिमसिम की मुद्रा को छोड़ना होगा
इस बंद दरवाज़े को तो़ड़ना होगा.