Last modified on 22 जुलाई 2016, at 08:40

दिल्ली में इस डर को देखा / संजय चतुर्वेद

असली को लतियाने वाले नकली के तेवर को देखा
खुसुर-पुसुर की कुव्वत देखी नैनामार ग़दर को देखा
गंगाजमनी लदर-पदर में गोताख़ोर हुनर को देखा
जे० एन० यू० की हिन्दी देखी परदेसी ने घर को देखा
मरियम जैसा भेस बनाए सखियों के लश्कर को देखा
निराधार बातों पर पैदा निराधार आदर को देखा
गयी शायरी मिले वज़ीफ़े दिल ने नई बहर को देखा
छक्के छूट गए भाषा के माया ने ईश्वर को देखा ।

2002