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दिल्ली में गाँव / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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जहिया भी दिल्ली आवै छी
ढेरे कामोॅ के बीचोॅ में
ढूंढ़िये लै छी मौकाहो ठो
भेंट करी आवौं सुन्दर सें।

सुन्दर तभिये भागी ऐलोॅ छेलै
जखनी बारोॅ साल के होतै
गाँव तेजी केॅ दिल्ली ऐलै
आरो कत्तेॅ साल हेन्है केॅ
यैठां-वैठां वहा दिहाड़ी
करतें-करतें आखिर में
कश्मीरी गेटोॅ सें सटले जाय
मोटर के कलपुर्जा वाला
एक दुकानी सें जाय लगलै।

फेनू तेॅ आपनोॅ गाँवोॅ के
कत्तेॅ-कत्तेॅ नी छौड़ा केॅ
साटी देलकै
ई ठो, उ ठो कोय दुकानी सें
जेकरा भेलै ई नसीब नै
करै दिहाड़ी वै में कोय्यो
कोय्यो, ठोला-रिक्सा हाँकै
कोय्यो नारियल-ठण्डा पानी
जानेॅ आरो की कत्तेॅ नी।

दिल्ली वासोॅ के दौरानी
कभियो जों जइयै कश्मीरी गेट जबेॅ भी
आरो सुन्दर केॅ खोजै में
भुतलैये कोय साँकरोॅ ठो कोनो गल्ली में
तेॅ सुन्दर के पता लगैतें
जोॅन मजुरोॅ सें टकरैयै
पता चलै कि ऊ बिहार के
बाँका भागलपुर के छेकै, कोय गाँव के।

हमरोॅ गामोॅ के कत्तेॅ नी
छॉर-छवारिक
छै आबाद वहा ठो कश्मीरी गेटोॅ पर
आरो ओकरोॅ आसे-पासे के जग्घा में।
सुन्दर, ऊ सब छोॅर-छवारिक के मरड़े छै।

ई दाफी सुन्दर भेटैलै
तेॅ हम्में आकरोॅ साथे ही आरेा छोॅर-छवारिक केरोॅ
हालचाल लेला के बादे, यहा कहैलियै
सुनोॅ सुशासन छै बिहार में
आबेॅ रोजी-रोजगारोॅ के साधन बढ़लै
लौटी जा तोहें सब आबेॅ अपनोॅ गाँव केॅ
कैन्हें सौंसे जिनगी
यै ठां कहॉे सड़ेवौ?

कुछ देरी लेॅ सुन्दर देखथैं रहलै हमरा होनै टुकटुक
फेनू बोललै ”भैया जी, लस्सी तेॅ पीयोॅ!“
सोन्होॅ माँटी के गिलास में लस्सी के स्वाद
हमरा कश्मीरी गेटोॅ दिश खींचतै रहलै
हम्में लस्सी केरोॅ स्वाद लिऐॅ तेॅ लागलौं
तभिये ऐलै वै ठां आरो कै मजूरो ठो
सब्भे लेॅ आँखी में हमरोॅ
अपनौती के भाव अजूबा
तभिये सुन्दर एक मजूर दिश
करी इशारा बोली पड़लै,
”ई आपने गाँमोॅ के छेकै भाय रमेसर
झकसा भैया केरोॅ बेटा
तोरा याद की ऐलौ हुनकोॅ?“

झकसा केरोॅ रूप
अचोके कौंधी उठलै हमरोॅ मन में
लगले रहै हमेशा हमरोॅ साथे जखनी बच्चा छेलौं
आरो जब तांय गामे ठो में टिकलोॅ रहलौं
ऊ हमरोॅ सब सुख-दुख केरोॅ हिस्सा छेलै
छुटलै गाँव,
वहू जाय छुटलै
सालो बाद रमेसर रूपोॅ में झकसा ठो
हमरोॅ ठियाँ खड़ा होय उठलै।

भूली केॅ लस्सी केॅ हम्में
रोमांचित होय देखेॅ लागलौं
अरे, वाह झकसे तेॅ छेकै।

ओकरोॅ सिर पर हाथ फेरतें
बोली उठलौं
”बेटा, हाल बताबोॅ आपनोॅ बाबू केरोॅ“
सुनथैं भेलै रुआंसा
आरो बोली पड़लै, ”बाबू आवेॅ जीत्तोॅ नै छै
हुनकोॅ मूं सें आखिर तांय ही
हम्में तोरोॅ नाम सुनलियौं
गामोॅ में तेॅ कहां देखलियौं हम्में तोरा
परदेशोॅ में आय भेटैली आबेॅ तोहें
काकाजी आबोॅ कहियो नी गामोॅ ठो में“
कहतें-कहतें ओकरोॅ गल्लोॅ भारी होलै।

सुन्दर तखनी बोली उठलै,
”आपनोॅ ई जे रमेसर छौं नी
धौलकुआं में बेचौं नारियल,
सुनथैं खबर कि तोंय ऐलोॅ छोॅ
भागले-भागले ऐलोॅ छौं ई“
आरो कुच्दू देर लेॅ चुप्पे रहि केॅ फेनू बोलेॅ लागलै
”गामोॅ में बुद्धन री कनियां
आग लगाय केॅ देहोॅ में मांटी तेजलकै
कैन्हैंकि एक रात दिशा मैदानोॅ लेली
गामोॅ सें होतै ही बाहर
एकठो चरकोॅ दानव ओकरा पर जाय चढ़लै
कुछुवे दिन बितलोॅ होतै कि नक्सलियों नें
गामोॅ में धावा बोली मुखिया केॅ लेलकौं
फेनू तेॅ बुद्धन के साथें छोॅर-छवारिक गामोॅ भर के
डाली देलकौं मडर केस में जाय पुलिसें
साल-साल भर हिन्नें-हुन्नें होतै रहलै
आखिर में हारी केॅ दिल्ली ई ऐलोॅ छौं।
भैया जी, गामोॅ में कुछुवो काम कहां छै
बस दबंग के बेगारी टा खटथैं बूड़ोॅ
इज्जत-उज्जत अलग झुलसतौं
यैठां तेॅ इज्जत सें खाय-कमाय केॅ बाकी
घरो भेजलियैं, अलगो सें कुछ।“

बितलै कत्तेॅ देर घड़ी-घण्टा दू-तीनो
कश्मीरी गेटोॅ पर आपनोॅ गांव केॅ देखी
जे कोय्यो लड़का सेॅ पूछिये हालचाल तेॅ
गाँव छुटै के दर्द
मवादे रं चेहरा केॅ पोती डालै
गाँव जवार में ओकरोॅ लेली काम कहाँ छै
ओकरा पर शोषण दबंग रोॅ
पुलिसो केरोॅ वहा चरम पर
अपने मुलुक लगै ऊ सब केॅ
जना कसाईखाना
जोॅर-जनानी बुतरु आरो मोह डीह के
खींची लानै गाँव मतरकि
जमॅे लकै छै कहाँ गोड़ ठो हिनकोॅ-हुनकोॅ
गाँव में
कुछ दिन जना प्रवासी पंछी होय छै
होन्है केॅ सब रही कुछू दिन
फेनू रौन लगावै होन्है, महानगर में।

दिल्ली सें पटना लौटी केॅ
बासी ठो अखबार पढ़ै छी
सरकारी भोपूं चिल्लावै
जंगलराज कहौं नै रहलै
सब्भे ओर सुशासन खाली
जनता के दरबारोॅ में सरकार घूमै छै
आर खबरिया चैनल ई बतलाय छै रहलोॅ
मंत्रिमंडल बैठक सचिवालय में नै होय
आबेॅ होय छै
नदी, गाँव आरो पहाड़ पर
जैसें दुनियां के नामी सब कम्पनियों केॅ
मंसूबोॅ निकली पड़लोॅ छै
मतुर सुन्दरे दिल्ली में ई कहलेॅ छेलै-
”भैया जी, गाँमोॅ में आबेॅ
खाली बच्चे-बूढ़ोॅ मिलथौं
जे जुआन छै, ऊ सब्भे तेॅ यहैं खटै छै
यहैं दिल्ली में हमरा सब के गाँव बसै छै।“

हम्में जों अचरज सें देखियै
तेॅ ऊ हाँसी-हाँसी बोलै
”यहैं शास्त्री पार्कॅ में छौं आपनोॅ गाँव
कभियो रातोॅ में आवोॅ तोंय हमरोॅ गाँव
चैता-विरहा खूब सुनैवौं तोरा हम्में“
फेनू कुच्दू देर रुकी केॅ बोलेॅ लागलै
”भैया जी
की होतै आबेॅ मुलके लौटी
रहै लैक हमरा सब्भे लेॅ रही गेलै की
आबेॅ तेॅ पहिलो सें बड़का राकस बैंठा
राकस जे झक-झक उजरोॅ छै।“