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दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर / 'सिराज' औरंगाबादी

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दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर
ज़ब्ह करते हो उस कूँ बे-तकबीर

नक्‍श-ए-दीवार सहन-ए-गुलशन है
जिस ने देखा है यार की तस्वीर

आशिक़ों कूँ नहीं है रूस्वाई
मुसहफ़-ए-इश्‍क़ की है ये तफ़सीर

गर्दिश-ए-चश्‍म-ए-यार बेजा नहीं
दिल के लेने की है उसे तदबीर

बुल-हवस कब तलक रहे आज़ाद
खोल सय्याद ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर

जानती है वो ज़ुल्फ़-ए-उक़दा-कुशा
मेरे आशुफ़्ता ख़्वाब की ताबीर

शब-ए-हिज्राँ में ऐ ‘सिराज’ मुझे
अश्‍क है शम्अ और पलक गुल-गीर