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दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं / रियाज़ ख़ैराबादी
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दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं
मुँह बनाता है बुरा क्यूँ वक़्त-ए-वाज़
आज वाइज़ तू ने पी अच्छी नहीं
बुत-कदे से मय-कदा अच्छा मिरा
बे-ख़ुदी अच्छी ख़ुदी अच्छी नहीं
मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या
मुफ़लिसी की मौत भी अच्छी नहीं
इक हसीं हो दिल के बहलाने को रोज़
रोज़ की ये दिल-लगी अच्छी नहीं
ज़र्रा ज़र्रा आफ़्ताब-ए-हश्र है
हश्र अच्छा वो गली अच्छी नहीं
अहल-ए-महशर से न उलझो तुम ‘रियाज़’
हश्र में दीवानगी अच्छी नहीं