भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल और तरह आज तो घबराया हुआ / आसिफ़ 'रज़ा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल और तरह आज तो घबराया हुआ है
ऐ बे-ख़बरी चौंक कोई आया हुआ है

सुलगे हुए बोसे ये हवा के हैं फ़ना के
दिल ख़ौफ़ से हर फूल का थर्राया हुआ है

ता-के न निगाहों को अँधेरे नज़र आएँ
आईना उजालों ने ये चमकाया हुआ है

ऐ रात न फ़ाख़िर हो सितारों की चमक पर
वो चाँद भी तेरा है जो गहनाया हुआ है