भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल की दरवाजा / सुभाष चंद "रसिया"
Kavita Kosh से
दिल की दरवाजा के खोल के रखिह दलानी में।
हो सईंया बड़ा मजा आवे अब पलानी में॥
टपटप टपकेला सावन के फूहरवा।
घरवा से निक लागे हमके बहरवा।
तनिको सहाला ना जुदाई जवानी में॥
हो सईंया बड़ा मजा आवे दलानी में॥
रात-दिन देखिला रउरे सपनवा।
केतनो मनाई माने नाही मनवा।
सरकेले फुफ्यूटिया जवानी में॥
हो सईंया बड़ा मजा आवे दलानी में॥
बेदर्दी हो गइले हमरे बलमुवा।
केतनो बुलाई आवे नाही गउवा।
अब बोले पपीहरा सिवानी में॥
हो सईंया बडा मजा आवे दलानी में॥