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दिल की बात जुबां तक लाओ तो फिर कोई बात बने / मृदुला झा
Kavita Kosh से
मेरे दर पर जो आ जाओ खुशियों की सौगात बने।
अनगिन रातें तनहाई की गुजरी हैं तेरे गम में,
संग-संग मेरे मुस्काओ दिन के जैसी रात बने।
देख गुलाबी पंखुरियों को सबका मन ललचाता है,
मुरझाये फूलों संग गाओ उसकी भी औकात बने।
रस का लोभी भँवरा देखो फिरता है डाली-डाली,
तुम प्यासे चातक बन जाओ स्वाति- स्वाति बरसात बने।
जीवन के अनजान सफर में मिल जायें दुखियारे गर,
उनके हिस्से का विष पीकर फिर कोई सुकरात बने।