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दिल की बीमारी के दौरान लिखी कविता-2 / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

(चुप हूँ)

लोग आते हैं
दबे पाँव
चुपचाप
ख़ामोश निग़ाहों से देखते हैं
चले जाते हैं

मैं कुछ बोलना चाहता हूँ

डॉक्टर कहता है ख़ामोश रहिए
पत्नी कहती है ख़ामोश रहिए
पिता माता भाई मित्र
सब कहते हैं ख़ामोश रहिए

वे सब चुप हैं
अपने होठों पर उँगली रखकर
चुप रहने का संकेत करते हैं

इस प्रकार अपने ही घर में
माता पिता पत्नी
पुत्र भाई बंधु
सबके साथ मैं चुप हूँ।