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दिल कूँ लगती है दिलरुबा की अदा / वली दक्कनी
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दिल कूँ लगती है दिलरुबा की अदा
जी में बसती है ख़ुश अदा की अदा
गरचे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले
क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा
हर्फ़ बेजा बजा है गर बोलूँ
दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा
नक्श़-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़
हैरत अफ़्ज़ा है बेवफ़ा की अदा
गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा
अश्क-ए-रंगीं में ग़र्क़ है निसदिन
जिसने देखा है तुझ हिना की अदा
ऐ 'वली' दर्द-ए-सर की दारू है
मुझ कूँ उस संदली क़बा की अदा