दिल के खो जाने से मैं किस वास्ते रोया करूँ / सफ़ी औरंगाबादी
दिल के खो जाने से मैं किस वास्ते रोया करूँ
खो गया तो आप ने खोया उसे मैं क्या करूँ
गिर्या-ए-बे-साख़्ता पर सोच में था क्या करूँ
वो भी बरहम हो चला तो हाए अब कैसा करूँ
कोई मश्रिक़ में बताता है तो मग्रिब में कोई
रोज़ किस किस से तेरे घर का पता पूछा करूँ
दर्द-मंदों को तसल्ली या तशफ़्फी दीजिए
ये कहाँ की बात सीखी आप ने मैं क्या करूँ
बात मुँह में है की मतलब तक पहुँच जाता है वो
कहिए फिर ऐसे से इज़हार-ए-तमन्ना क्या करूँ
सामने आया तो उस को देख सकता भी नहीं
आरज़ू ही आरज़ू है बस उसे देखा करूँ
कौन सा आफत-ज़दा रहता है कूचे में तेरे
शब को इक आवाज़ आती है इलाही क्या करूँ
रात को तकलीफ़-ए-मेहमानी है सिर्फ़ इस वास्ते
सुब्ह जब उट्ठूँ तो सूरत आप की देखा करूँ
ऐ ‘सफ़ी’ बस अब तो मैं ने ठान ली है एक बात
सब की सुनने को तो सुन लूँ काम करने का करूँ