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दिल को जब दिल से राह होती है / जिगर मुरादाबादी
Kavita Kosh से
दिल को जब दिल से राह होती है
आह होती है वाह होती है
इक नज़र दिल की सिम्त देख तो लो
कैसे दुनिया तबाह होती है
हुस्न-ए-जानाँ की मन्ज़िलों को न पूछ
हर नफ़स एक राह होती है
क्या ख़बर थी कि इश्क़ के हाथों
ऐसी हालत तबाह होती है
साँस लेता हूँ दम उलझता है
बात करता हूँ आह होती है
जो उलट देती है सफ़ों के सफ़े
इक शिकस्ता-सी आह होती है