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दिल को यूँ बहला रख़्ख़ा है / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

दिल को यूँ बहला रक्खा है
दर्द का नाम दवा रक्खा है!

आओ प्यार की बातें कर लें
इन बातों में क्या रक्खा है!

झिलमिल-झिलमिल करती आँखें
जैसे एक दिया रक्खा है !

अक़्ल ने अपनी मजबूरी का
थक कर नाम ख़ुदा रक्खा है!

मेरी सूरत देखते क्या हो?
सामने आईना रक्खा है!

राहे-वफ़ा के हर काँटे पर
दर्द का इक क़तरा रक्खा है

अब आए तो क्या आए हो?
आह! यहाँ अब क्या रक्खा है!

अपने दिल में ढूँढो पहले
तुमने खु़द को छुपा रक्खा है

अब भी कुछ है बाक़ी प्यारे?
कौन सा ज़ुल्म उठा रक्खा है!

‘सरवर’ कुछ तो मुँह से बोलो
ये क्या रोग लगा रक्खा है?